दिलीप अवस्थी
अटल बिहारी बाजपेयी का लखनऊ के लोगों से वही रिश्ता ठहरता है जो सांटाक्लाज़ और बच्चों का I २५ दिसंबर के जन्मदिवस को उन्होंने लखनऊ पर अपना भरभर कर प्यार और तमाम तोहफे बरसा कर चरितार्थ किया I फिर लखनऊ वालों ने भी अटलजी को सिर पर बैठाकर रखा I

केंद्रीय अभिसूचना, एनएसजी इत्यादि की जांच में हमारे दफ्तर का स्थान सुरक्षा दृष्टि से अनुपयुक्त पाया गया I अब तो गेंद सिर्फ अटलजी के पाले में थी I उनके सचिवालय में उन दिनों तैनात पुराने मित्र अशोक प्रियदर्शी से कहकर लखनऊ में अटलजी के अगले प्रवास के दौरान मुलाक़ात हुयी I राजभवन के कक्ष में कुछ इंतज़ार बाद मैं अटलजी के सम्मुख था I छूटते ही बाले, "नौकरी क्यों छोड़ दी I ये तुम्हारा पोर्टल न चला तो क्या होगा?"I "सर आपकी कृपा होगी तो जरूर चलेगा", मैंने कहा I फिर उन्होंने पास बुलाकर समझाया की अपने पैसे क्यों फूंकते हो जब हमलोग हैं I उसी समय पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष उन्होंने अधिकारियों को आदेश दिया की उद्घाटन कार्यक्रम राज भवन में होगा और वे उसमे ३० मिनट तक रहेंगे I जनवरी 2000 में विधिवत उदघाटन हुआ और कार्यक्रम से जाते जाते अटलजी मेरे कान में बोले - कोई भी दिक्कत हो बताना I
ऐसेही जब मैंने सन 2004 में प्रधानमंत्री के तौर पर लखनऊ की आखिरी यात्रा के दौरान उनका साक्षात्कार लिया, जो आज भी मेरे पास रिकार्डेड है, तो वह कुछ ज्यादा बोलने के मूड में नहीं थे I मेरे साथ मेरे सहयोगी अंशुमान शुक्ल भी थे I हम जैसे ही कुछ पूछते तो वह हमारी ओर एकटक निहारने लगते या फिर अपनी चिर-परिचित मुस्कान बिखेर कर ठुमकने सा लगते I मैं परेशां हो चला था की इतनी मुश्किल से तो इंटरव्यू का समय मिला है I फिर अखबार में अब लिखेंगे क्या ? झुंझलाकर मैंने कहा कि अटलजी ये मुस्कुराने और ठुमकने को शब्दों में कैसे ढाला जाये एक ठहाका मार कर फिर उन्होंने अपने बोलने की लय पकड़ी और हमे मिला एक पठनीयइंटरव्यू I
अटलजी का लखनऊ के विकास और सौंदर्यीकरण पर विशेष ध्यान हुआ करता था I अटलजी ख़बरों को विशेषकर लखनऊ की ख़बरों को लेकर अति-संवेदनशील रहते थे I कभी-कभी तो सिंगल-कॉलम में छपी आसपास के क्षेत्रों की खबर पर भी सुबह-सुबह उनका फ़ोन आजाता था I कभा तो वह यह भी कह देते थे की खिलाफ लिखो लेकिन कान में बता भी दो जिससे मैं स्थितियां ठीक कर सकूं I
खाने के बेहद शौक़ीन अटलजी की एक तस्वीर आंखों में बसी है I 1998 में एक आम की दावत मलिहाबाद के अमानीगंज में राखी गयी थी I बस राजनाथ सिंह सहित चंद लोग मौजूद थे I अटलजी के सामने एक थाल में करीने से कटे हुए आम पेश किये गए I एक-दो फांके तो उन्होंने खाई फिर बोले अरे खान साहेब आम भी कहीं ऐसे खाया जाता है? पूरे आमलाइये I एक, दो, तीन, चार, अटलजी दोनों हाथों से अमरस निकालने में जुटे थे I उनके अधिकारियों ने जब टोका क्योंकि वह डायबिटिक थे, तो वे बोले - अरे तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो, जाओ ज़रा बाग की सैर करके आओ I आम खाओ , मेरी गुठलियां मत गिनो.....