दिलीप अवस्थी
उत्तर प्रदेश में भाजपा की अप्रत्याशित सफलता के बाद उठ रहे विचित्र विरोध के स्वर सुनकर कुछ ऐसा ही महसूस होता है I दौलत की रानी मायावती, बड़बोले केजरीवाल , और सकपकाई कांग्रेस ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ई वी ऍम ) को लेकर जिस तरह के सवाल उठाये हैं उनसे और कुछ नहीं तो राजनैतिक दिवालियेपन और संगदिली की झलक जरूर मिलती है I कुंठित अखिलेश यादव ने भी जांच होने का समर्थन करके खुद को भी इस खेमे में शामिल कर लिया है I
इन नेताओं और दलों ने यह भी सोचने का कष्ट नहीं किया कि सबसे पहले तो ईवीएम पर सवाल उठाकर वे चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं I फिर साथ ही ये आरोप भी लगा रहे हैं की प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने चुनाव आयोग से वोटिंग मशीनों में धांधली करवा कर यह चुनाव जीत है I दोनों ही सूरतों में एक मजेदार नज़रिया उभरता है I आप जैसा खुद करते हो वैसा ही दूसरा करेगा यह मानते हो I
क्या इन बयानों से यह समझा जाये कि अपने शासनकाल में कांग्रेस, मायावती और अखिलेश ऐसे ही अपना राज-काज चलाते थे ? क्या सरकारी संस्थानों, सरकारी कार्यों, नौकरियों-तबादलों में ऐसे ही धांधलियां की जाती थी ? क्या केजरीवाल दिल्ली में इसी तरह से सरकार चला रहे हैं? क्या इन नेताओं और राजनितिक दलों ने 2002, 2007, 2012और 2015 के चुनाव ऐसे ही जीते थे ?
अगर इन सवालों से बुरा लग रहा हो तो मेरी राय में हार को स्वीकार करना सीखो और क्यों हारे यह समझो I हार स्वीकारोगे तो हार बहुत कुछ सिखाएगी वरना पाँच साल तक ऐसे ही खिसियाई बिल्ली की तरह खम्बा नोचते रहना I
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